Friday, May 19, 2017

मनी बैक और इंडोवमेंट इंश्योरेंस क्यूँ है आपकी फाइनेंसियल सेहत के लिए हानिकारक ?




जब भी कोई मनी बैक और इंडोवमेंट इंश्योरेंस प्लान लिए होने की बात करता है तो मुझे उसके लिए बहुत पीड़ा होती है क्यूंकि ये ऐसे फाइनेंसियल प्रोडक्ट हैं जो आदमी को फायदा कम नुकसान ज्यादा देते हैं. मै हमेशा से ऐसे ट्रेडिशनल इंश्योरेंस और इन्वेस्टमेंट के हाइब्रिड रूप के खिलाफ बोलता हूँ क्यूंकि ना तो ये इन्वेस्टमेंट का काम ठीक से कर पाते हैं और ना ही इंश्योरेंस का. हाँ लेकिन जिस दोस्त, रिश्तेदार पड़ोसी या बैंक वाले ने आपको यह प्लान बेचा है उसके लिए तो फायदा ही फायदा है.

ऐसे इंश्योरेंस प्लान से दूर रहने की सलाह मै निम्न कारणों से देता हूँ.

1- यह एक परिवार की इंश्योरेंस की जरुरत को पूरा नहीं करता. आपकी सालाना इनकम 5 लाख रूपये हैं तो आपका इंश्योरेंस कम से कम 40 लाख का होना चाहिए. अगर आप मनी बैक और इंडोवमेंट इंश्योरेंस प्लान के साथ इतने अमाउंट का इंश्योरेंस कवर लेते हो तो शायद आपकी सैलरी भी उसके लिए कम पड़ जाये. इसलिए इश्योरेंस की जरूरत  सिर्फ टर्म प्लान से ही पूरी हो सकती है. जहाँ पर एक 30 साल के पुरुष को 50 लाख का इंश्योरेंस 6 हजार से 9 हजार रूपये में हो जाता है और वहीँ एक महिला को 50 लाख का इंश्योरेंस सिर्फ 5 हजार से 7 हजार के बीच में हो जाता है.

2- ये प्रोडक्ट इतने काम्प्लेक्स होते हैं कि एक आम आदमी के लिए उसको समझना बहुत मुश्किल होता है. आप अगर इन प्रोडक्ट के डिटेल देने वाले प्रोडक्ट नोट या हैण्ड आउट को पढेंगे तो आपको उसमे जवाब कम सवाल ज्यादा मिलेंगे. मतलब के आप कुछ समझ नहीं पायेंगे और अंततः इंश्योरेंस बेचने वाले बैंक के कर्मचारी या एजेंट के जबानी  उस प्रोडक्ट के फायदे, नुकसान, उपयोगिता वाली गोल मोल बातों को ही सच मान कर समझ लेते हैं. इस तरह से आप एक ऐसा फाइनेंसियल प्रोडक्ट लम्बे समय के लिए खरीद लेते हैं जिसे आप कभी समझ ही नहीं पाए हैं.

3- ऐसे इंश्योरेंस प्लान में आपको पैसे तो हर हाल में वापस मिलते हैं लेकिन वो कितना बढ़ के मिलते हैं यह ना कोई समझा पाया ना कोई समझ पाया. इन प्रोडक्ट में आपको जमा किया गए धन पर 0.50% से लेकर 6% का रिटर्न मिलता है जो की महंगाई की दर से भी कम होता है बस आपने जो 20-25 साल में कंपनी को साल दर साल पैसे दिए हैं वही इकट्ठा होकर मिल जाता है या मनी बैक के रूप में मिलता रहता है. अब आप खुद ही समझ सकते हैं कि ऐसे इन्वेस्टमेंट से आप कितना पैसा अपने या अपने परिवार के लिए बना पायेंगे.

4. अगर आप पालिसी टर्म पूरा होने से पहले इसे सरेंडर करना चाहो तो उसे आपके लिए इतना मुश्किल और डरावना बनाया गया है कि आप चाह कर भी कभी सरेंडर नहीं कर पायेंगे. सबसे पहले तो आपके पैरों तले से जमीन खिसक जाती है इन प्रोडक्ट्स के सरेंडर चार्ज सुन कर अगर उस पर भी आप सरेंडर करने का दृढ़ संकल्प ले लें तो आपका एजेंट या बैंक आपको घुमायेगा अगर आप किसी दुसरे एजेंट की मदद लेंगे तो वो इस प्लान को सरेंडर इसी शर्त पर करवायेगा जब आप उस से दूसरा प्लान लेने के लिए तैयार हो. यह सब सुनने के बाद आप निर्णय लेते हैं कि आप स्वयं जाकर इस पालिसी को सरेंडर करके मुक्ति लेंगे तो आप अपनी पड़ोस की ब्रांच में उसे सरेंडर करने जाते हैं तो वहां पर आपको यह बता दिया जायेगा कि यह सिर्फ उसी ब्रांच में सरेंडर होगी जिस ब्रांच से आपके एजेंट या बैंक ने पालिसी करवाई है. इस तरह से यह पालिसी एक ऐसा लड्डू बन जाता है जो ना निगला जाता है ना उगला जाता है.

लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी किसी के फाइनेंसियल प्लानिंग  का महत्वपूर्ण हिस्सा होती है। सही बीमा पॉलिसी के चुनाव से भविष्य में परिवार उस मुश्किल घड़ी का सामना कर पाता है, जब घर की जिम्मेदारी संभाल रहे व्यक्ति के साथ हादसा हो जाता है। कई बार गलत चुनाव करने से वही पॉलिसी मुश्किलें खड़ा कर देती है और बीमाधारक के फाइनेंसियल गोल्स को  हासिल करने में रोड़ा बन जाती है. 

कुछ दिन पहले सेबी की इन्वेस्टर सर्वे 2015 रिपोर्ट आई है जिसमे से एक भयावह बात निकल कर सामने आई है वो यह है कि भारत में 67% लोग लाइफ इंश्योरेंस को इन्वेस्टमेंट और सेविंग के माध्यम की तरह उपयोग करते हैं. अब आप स्वयं सोच लीजिये अगर 67% लोग अपने फाइनेंसियल प्रोडक्ट्स के चुनाव में इतनी बड़ी चूक करेंगे तो उनके फाइनेंसियल गोल्स का क्या होगा. इसलिए इस विषय पर आज ज्यादा बात करना और  भी जरुरी है.

क्या करें अगर यह पालिसी आपके पास भी है ?

1- यह करना तो बड़ा मुश्किल है लेकिन अगर आपको 1-2 साल ही हुए हैं तो अच्छा है पालिसी प्रीमियम भरना बंद कर दें और पालिसी को लैप्स हो जाने दें. वैसे यह करने का मतलब है आपने जितना प्रीमियम भरा है उसका पूरी तरह से डूब जाना लेकिन इसका फायदा यह हो सकता है कि वही पैसा आप अगले वर्ष से सही जगह निवेश करेंगे या सही इंश्योरेंस (टर्म प्लान) खरीदेंगे तो भविष्य में निश्चित रूप से आपको कहीं अधिक लाभ होगा. 

2- दूसरा तरीका है आप इसे तीन साल के बाद सरेंडर करें जहाँ पर फिर से आपको सरेंडर चार्ज के रूप में अपनी जमा किये  हुए  प्रीमियम का 30-50% तक की राशि से समझौता करना पड़ता है. वैसे यह निर्णय भी आसान नहीं होगा लेकिन अगर आप आज यह निर्णय नहीं ले पायेंगे तो समय के साथ आपका नुकसान इस फाइनेंसियल प्रोडक्ट्स में बने रहने से बढ़ता ही जायेगा.

3- तीसरा तरीका है आप मनी बैक और इंडोवमेंट इंश्योरेंस पालिसी को पेड-अप पालिसी में बदल दें . तीन साल प्रीमियम चुकाने के बाद ही इस विकल्प को आजमाया जा सकता है। इसमें निवेशक को रकम लौटाने के बजाय बीमा कंपनी उसका उपयोग बीमाधारक को लाइफ कवर देने में करती है। हर साल वह उसमें से मॉर्टलिटी चार्ज काटती है.

इनमे से आपके लिए जो सही तरीका है उसको अपना कर ऐसे बुरे फाइनेंसियल प्रोडक्ट्स से मुक्ति प्राप्त करें.

इन्वेस्टमेंट और इंश्योरेंस को अलग-अलग तरह से देखें. लाइफ इश्योरेंस के लिए टर्म प्लान लें और इन्वेस्टमेंट के लिए अपनी रिस्क लेने की क्षमता और इन्वेस्टमेंट करने के उद्देश्य के आधार पर म्यूच्यूअल फण्ड, बांड, फिक्स्ड डिपाजिट, गोल्ड, रियल एस्टेट, PPF और इक्विटी का चुनाव करें.

मेरा आप सभी से अनुरोध है लोगों को जागरूक करें ना तो स्वयं ऐसे प्रोडक्ट खरीदें ना ही किसी और को खरीदने की सलाह दें.

इस ब्लॉग को अपने मित्र, रिश्तेदार और परिवार के सदस्यों में फॉरवर्ड कर के उनको जागरूक बनाने में सहायता करें.

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Image Source: http://www.freedigitalphotos.net

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