Monday, July 24, 2017

डेब्ट फण्ड समझिये और फिक्स्ड डिपाजिट भूल जाइये...



डेब्ट फण्ड और फिक्स्ड डिपाजिट के बारे में आपने पिछले ब्लॉग में पढ़ा होगा.. आज समझते हैं कि डेब्ट फण्ड कैसे रिटर्न बनाते हैं और कैसे वो फिक्स्ड डिपाजिट से बेहतर बनते हैं.

डेब्ट फण्ड या फिक्स्ड इनकम फण्ड इतने प्रकार के होते हैं कि आम निवेशक के लिए यह समझना बहुत मुश्किल है कि उसके लिए कौन सा फण्ड सही है उसे कितने समय के लिए किन फंड्स में निवेश करना है, क्यूँ इतने तरह के डेब्ट फंड्स मार्केट में उपलब्ध है? 

वैसे तो डेब्ट फण्ड, इक्विटी फण्ड के मुकाबले बहुत ज्यादा सुरक्षित होते हैं लेकिन इनसे मिलने वाला रिटर्न, अलग अलग फंड्स की उनकी उपयोगिता और रिटर्न के कम या ज्यादा होने कि संभावना, इन तीनों बातों को आप समझ कर पैसे नहीं लगाते तो आपका अनुभव शायद इनको लेकर उतना अच्छा ना हो.

कुछ दिन पहले मेरी एक वर्कशॉप में एक रिटायर्ड पीसीएस ऑफिसर अपने नोटबुक के साथ आये उन्होंने बहुत सारे प्रश्न डेब्ट फंड्स के बारे में मुझसे किये, वर्क शॉप के बाद उन्होंने अपनी नोट बुक मुझे दिखाई, उस नोट बुक में उन्होंने कई सारे समाचार पत्रों में निकले लेखों कि कटिंग लगा रखी थी. अपने रिटायरमेंट फण्ड का निवेश करने के लिए इतनी पढाई वो कर रहे थे. लेकिन जिन लेखों का रेफ़रेन्स वो ले रहे थे वो उन्हें गलत दिशा में ले जा रहे थे, जैसे एक लेख में लिखा था "डायनेमिक बांड फण्ड ने दिया इक्विटी से ज्यादा रिटर्न ", दूसरे लेख में लिखा था "बांड फण्ड में बने एक साल में 14% रिटर्न और साथ में वह लेख इस तरह से लिखा था कि आम निवेशक यही समझे कि यहाँ पर पैसे लगाने में एक साल में 14% ब्याज मिलता है और यही बात वो भी समझ रहे थे. जब मैंने अपने वर्कशॉप में यह बात की आम तौर पर डेब्ट फण्ड में डबल डिजिट रिटर्न बनाना मुश्किल  होता है तो वह इसी लेख में लिखी  बातों को लेकर प्रश्न करने लगे. क्यूंकि उन्होंने पेपर में छपे लेख पर इतना भरोसा था कि जब तक मैंने उन्हें डेब्ट फण्ड में रिटर्न कहाँ से और कैसे मिलते हैं वो ठीक से नहीं समझा दिया तब तक वो न्यूज़ पेपर कि बात को गलत मानने के लिए तैयार नहीं थे.

तो इस तरह से कई बार निवेशक सही तरह से प्रोडक्ट को समझ नहीं पाते और इतनी रिसर्च करने के बाद भी गलत फण्ड में निवेश करते हैं और फिर म्यूच्यूअल फण्ड के बारे में गलत धारणा बना लेते हैं.

डेब्ट म्यूच्यूअल फण्ड में अगर आप पैसे लगाने जा रहे हैं तो इस ब्लॉग को ध्यान से पढ़िए. इसे पढने के बाद आप जान पाएंगे कि डेब्ट फण्ड में पैसे लगाने से पहले क्या-क्या तथ्य आप को देखने चाहिए साथ ही एक आम निवेशक के लिए कौन से डेब्ट फण्ड सही होते हैं.


डेब्ट फण्ड में रिटर्न कहाँ से आता है - 


डेब्ट फण्ड में रिटर्न दो तरह से बनते हैं पहला तो उसके पोर्टफोलियो में जो भी बांड, डिबेंचर, गवर्नमेंट सिक्योरिटीज या और कोई डेब्ट इंस्ट्रूमेंट ख़रीदे गए हैं उनसे मिलने वाले ब्याज से और दूसरा अर्थव्यवस्था में ब्याज दर के गिरने से उन बांड, डिबेंचर, गवर्नमेंट सिक्योरिटीज के मार्किट रेट में होने वाले परिवर्तन से . केवल यही दो सोर्स होते हैं किसी भी डेब्ट फण्ड में रिटर्न बनाने के. 

यहाँ पर ये समझान बहुत जरुरी है कि पहला सोर्स तो एक तरह से स्टेबल होता है लेकिन दूसरा सोर्स कई बार फण्ड के रिटर्न बढाता है और कई बार फण्ड के रिटर्न कम भी कर देता है. और यही दूसरा सोर्स डेब्ट फंड्स को ट्रेडिशनल फिक्स्ड डिपाजिट से अलग करता है.

डेब्ट फण्ड के रिटर्न समझने के लिए आपको जानने चाहिए ये तीन महत्वपूर्ण तथ्य-

1- पोर्टफोलियो का YTM (Yield Till Maturity)


ये बहुत महत्वपूर्ण इंडिकेटर है जिसे देख कर आप मोटा-मोटा यह अनुमान लगा सकते हैं कि आपके डेब्ट फण्ड के रिटर्न में पहला सोर्स ऑफ़ रिटर्न मतलब इंटरेस्ट कितना योगदान देने वाला है. पोर्टफोलियो का YTM जितना ज्यादा है उस डेब्ट फण्ड में ब्याज से होने वाली इनकम उतनी ज्यादा होगी.


2- पोर्टफोलियो का Modified Duration (Mod)



पोर्टफोलियो का Mod आपको यह बताता है कि मार्किट में 1% ब्याज दर के घटने से आपके फण्ड का रिटर्न कितना बढेगा और 1% ब्याज बढ़ने से फण्ड का रिटर्न कितना कम होगा.



3- फण्ड के खर्चे (Expens Ratio)- 


फण्ड को मैनेज करने, मार्किट करने या अन्य किसी तरह के खर्चे को दर्शाने के लिए फण्ड का एक्सपेंस रेशियो बताया जाता है. अगर किसी स्कीम का एक्सपेंस रेशियो 1.25% है तो इसका मतलब है पुरे साल में फण्ड 1.25% कि दर से फण्ड कि NAV (Net Asset Value) से ये खर्चे काट लिए  



अब ऊपर दिया गए तीनों फैक्टर्स को देख कर आप आसानी से यह अनुमान लगा सकते हैं कि अगले एक साल में आपके डेब्ट फण्ड में क्या रिटर्न मिल सकता है.



मान लीजिये किसी फण्ड का YTM 9% है और उसका Mod 2.5% है और उसका एक्सपेंस रेशियो 1% है. अब हम अनुमान लगाते हैं कि अगले एक वर्ष में मार्केट में ब्याज दर 0.50 कम होती है, 0.50% बढती है या ब्याज दरों में कोई परिवर्तन नहीं होता है, तीनों अवस्था में डेब्ट फण्ड में रिटर्न अलग-अलग बनेंगे और इसका अनुमान बस आप एक सूत्र से पता कर सकते हैं


पोर्टफोलियो रिटर्न = YTM - (Change in Interest Rate X Mod Duration) - Exp Ratio

i) 0.50% ब्याज दर कम होना-


पोर्टफोलियो रिटर्न = 9 - (-0.50 X 2.50) - 1.25
                    = 9 - (-1.25) - 1.25
                    = 9 + 1.25) - 1.25
                    = 9%
इस तरह से 0.50% ब्याज दर में कमी आने से आपके डेब्ट फण्ड का रिटर्न 9% बन सकता है

ii)  0.50% ब्याज दर बढ़ना-


पोर्टफोलियो रिटर्न = 9 - (0.50 X 2.50) - 1.25
                    = 9 - (1.25) - 1.25
                    = 9 - 1.25 - 1.25
                    = 6.50 %
इस तरह से 0.50% ब्याज दर बढ़ने से आपके डेब्ट फण्ड का रिटर्न 6.50% बन सकता है

iii)  ब्याज दर में कोई परिवर्तन ना होना


पोर्टफोलियो रिटर्न = 9 - (0 X 2.50) - 1.25
                    = 9 -0 - 1.25
                    = 7.75%

जब ब्याज दर में कोई परिवर्तन ना आने पर आपके डेब्ट फण्ड का रिटर्न अगले एक वर्ष में 7.75% बन सकता है. 

एक डिस्क्लेमर देना यहाँ जरुरी है कि इस सूत्र द्वारा जो अनुमान लगा रहे हैं वो शत प्रतिशत तो आपके फण्ड से मिलने वाले रिटर्न से मैच नहीं करेगा. लेकिन इस तरह से आप मोटा-मोटा अनुमान लगा सकते हैं कि फण्ड कितना रिटर्न बना सकता है.  

तो इस तरह से आपने समझ लिए डेब्ट फण्ड के रिटर्न के बारे में.

अब जरुरी है समझना डेब्ट फण्ड में रिस्क के बारे में-

डेब्ट फण्ड में मुख्यतः 2 रिस्क होते हैं पहला इंटरेस्ट रेट रिस्क और दूसरा क्रेडिट रिस्क.

इंटरेस्ट रेट रिस्क आप ऊपर समझ चुके हैं... ब्याज दरों के घटने बढ़ने से आपके पोर्टफोलियो के रिटर्न घटते और बढ़ते हैं इस रिस्क को हम इंटरेस्ट रेट रिस्क कहते हैं और इसे आपने ऊपर दिए हुए उदाहरण से अच्छे से समझ लिया होगा. 

दूसरा रिस्क होता है क्रेडिट रिस्क, फण्ड मैनेजर  पोर्टफोलियो के रिटर्न बढ़ाने के लिए कम रेटिंग के बांड्स या डिबेंचर में निवेश करते हैं क्यूंकि जिन बांड्स कि रेटिंग कम होती है वो अच्छी रेटिंग वाले बांड्स कि तुलना में ज्यादा इंटरेस्ट देते हैं इसलिए फण्ड मैनेजर अपने फण्ड का रिटर्न बढ़ाने के लिए कैलकुलेट्ड रिस्क लेते हैं. क्रेडिट रेटिंग घटने से बांड की मार्केट वैल्यू भी घटती है और यही रिस्क कहलाता है क्रेडिट रिस्क. Govt Sec को हाईएस्ट क्रेडिट रेटिंग मिलती है, उसके बाद AAA रेटेड बांड का नंबर आता है, और जैसे-जैसे ये रेटिंग AA, A, BBB, BB घटती है वैसे ही बांड के क्रेडिट रिस्क बढ़ जाते हैं.


कौन सा डेब्ट फण्ड है आपके लिए -


पोर्टफोलियो की Average Maturity देख कर आप यह अनुमान लगा सकते हैं कि उस फण्ड में आपको कम से कम कितने दिन के लिए निवेश करना चाहिए.

अगर फण्ड की Average Maturity 1-60 दिन की है तो आप उसमे 1 दिन से लेकर 3 महीने के लिए पैसे लगायें. सामान्यतः इस रेंज में आपको लिक्विड फण्ड या मनी मार्केट फण्ड मिलेंगे.

अगर फण्ड की Average Maturity 4 महीने से 8 महीने की है तो आप उसमे 3 महीने से लेकर 6 महीने तक के लिए पैसे लगायें. सामान्यतः इस रेंज में आपको अल्ट्रा शोर्ट टर्म फण्ड मिलेंगे.

अगर फण्ड की Average Maturity 9 महीने से 1.5 साल के आस पास की है तो आप उसमे 6 महीने से लेकर 1 साल के लिए पैसे लगायें. सामान्यतः इस रेंज में आपको शार्ट टर्म फण्ड मिलेंगे.

अगर फण्ड की Average Maturity 1.5 साल से 4.5 साल के आस पास की है तो आप उसमे  दिन से लेकर 1 से 3 साल के लिए पैसे लगायें. सामान्यतः इस रेंज में आपको मीडियम टर्म, कॉर्पोरेट बांड फण्ड या क्रेडिट फण्ड मिलेंगे.

5 साल से अधिक के Average Maturity वाले फण्ड और पोर्टफोलियो में BB से नीचे रेटिंग वाले बांड में निवेश करने वाले फण्ड में पैसे लगाने से पहले अपने निवेश सलाहकार से फण्ड में क्रेडिट रिस्क और इंटरेस्ट रेट रिस्क के ऊपर अवश्य चर्चा करें.

डेब्ट फण्ड की Average Maturity, YTM, Mod Duration और Exp Ratio ये चारो चीजें आपको फण्ड के फैक्टशीट या अन्य वेबसाइटस से मिल सकता है. 

डायनामिक बांड फण्ड, गिल्ट फण्ड, लॉन्ग टर्म इनकम फण्ड या इनकम फण्ड जैसे नाम के फण्ड में एक रिटेल इन्वेस्टर को इन्वेस्ट करने से पहले आने वाले समय में अर्थव्यवस्था में होने वाले ब्याज दरों के परिवर्तन जरुर समझ लेना चाहिए क्यूंकि इन केटेगरी के फंड्स में इंटरेस्ट रेट रिस्क ज्यादा होता है. मार्केट में इंटरेस्ट रेट बढ़ने कि स्थिति में इन फंड्स के रिटर्न में कमी आती है और जिसके कारण कई बार 3-6 महीने के लिए इन फंड्स के रिटर्न नेगेटिव भी हो जाते हैं या बहुत कम हो जाते हैं.

कैपिटल प्रोटेक्शन और डेब्ट ओरिएंटेड हाइब्रिड फंड्स में तभी निवेश करें जब मार्केट में ब्याज दरें अधिक हों और इक्विटी मार्केट भी फेयर वैल्यूएशन पर हो अन्यथा आपको 3 साल बाद मिलना वाला रिटर्न फिक्स्ड डिपाजिट से बेहतर नहीं होगा.

तीन फैक्टर डेब्ट फंड्स को एक सामान्य फिक्स्ड डिपाजिट से बेहतर बनाते हैं- पहला फैक्टर है इंटरेस्ट रेट में होने वाले परिवर्तन को फण्ड मैनेजर कैसे आपके हित में काम करवाता है, दूसरा क्रेडिट रेटिंग के मामले में कैलकुलेट्ड रिस्क ले कर आपके रिटर्न कैसे बढाता है तीसरा इनसे मिलने वाले रिटर्न पर लगने वाला टैक्स. 

डेब्ट फण्ड को समझ कर यदि आप निवेश करेंगे तो आप अपने पुराने इन्वेस्टमेंट के तरीके को जल्दी ही भूल जायेंगे क्यूंकि यह तरीका आपके रिटर्न भी बढ़ाएगा और उस रिटर्न पर लगने वाले टैक्स के बोझ को भी कम करेगा और इस तरह से यह तरीका आपकी पूंजी पर ट्रेडिशनल डिपॉजिट्स से मिलने वाले पोस्ट टैक्स रिटर्न से साल दर साल  1-3% के रिटर्न बढ़ा सकता है.

डेब्ट फण्ड से मिलने वाले रिटर्न पर कैसे लगता है टैक्स पढने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें.


Image Source: http://www.freedigitalphotos.net


1 comment:

  1. Crisp and understable, Good learning on debt funds

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