Tuesday, September 5, 2017

लिक्विड फण्ड में मिलता है सेविंग्स अकाउंट से 3% ज्यादा रिटर्न : ICRA


ICRA जो कि भारत की जानी मानी रिसर्च एजेंसी है उसकी हाल ही में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार लिक्विड फण्ड के माध्यम से एक आम आदमी सेविंग्स अकाउंट से लगभग 3% सालाना ज्यादा रिटर्न बना सकता है. अगर पोस्ट टैक्स रिटर्न की बात करें तो भी यह अंतर 30% टैक्स स्लैब वाले के लिए 1.63% का होता है.

https://www.icraresearch.in/research/ViewResearchReport/1492
रिपोर्ट पढने के लिए ऊपर दिए गए लिंक को क्लिक करें.

31st जुलाई 2017 को देश के सबसे बड़े बैंक SBI ने जब से अपनी सेविंग्स अकाउंट की ब्याज दरें घटाई तब से अब तक लगभग सभी बैंकों ने अपने सेविंग्स अकाउंट में ब्याज दरें घटा दी हैं. क्यूंकि अधिकतर बैंकों में नोटबंदी के बाद डिपॉजिट्स बढे हैं लेकिन अर्थव्यवस्था के हालात अभी भी ना सुधरने के कारण क्रेडिट ग्रोथ एकदम सुस्त है दूसरी तरफ MCLR लागू होने के बाद से बैंकों के NIM पर भी दबाव पड़ा है जिसके चलते लगभग सभी छोटे बड़े बैंकों ने अपने सेविंग्स अकाउंट पर ब्याज दरें कम कर दी. सेविंग्स अकाउंट का योगदान बैंकों के CASA बैलेंस में लगभग 78% और बैंकों को टोटल डिपाजिट बेस में लगभग 30% है और एक अनुमान के अनुसार यह 0.50% कि ब्याज दरों में कटौती, बैंकों के NIM को लगभग 15 बीपीएस बढ़ा देगा.

इस तरह से बैंकों ने अपने फायदे का काम तो कर  लिया है. अब बारी है एक आम आदमी को इस बात को समझने की सेविंग्स अकाउंट के तुलना में लिक्विड फण्ड अगर आपको 3% तक ज्यादा रिटर्न दे सकते हैं तो क्यूँ ना सेविंग्स अकाउंट का पैसा लिक्विड फण्ड में रखा जाय.

बैंकों का यह मानना है कि रिटेल कस्टमर सेविंग्स अकाउंट का प्रयोग इन्वेस्टमेंट या लम्बे समय तक रखने के लिए नहीं करता है बल्कि सेविंग्स अकाउंट का उपयोग वह केवल ट्रांजेक्शन करने के लिए करता है और सेविंग्स अकाउंट और करंट अकाउंट का उद्देश्य भी यही है . लेकिन देश में क्या इतने लोग फाइनेंसियली जागरूक हैं?? निश्चित तौर पर नहीं अन्यथा इतना बड़ा अमाउंट (टोटल डिपाजिट का 30%) सेविंग्स अकाउंट में नहीं पड़ा रहता और बैंकिंग इंडस्ट्री का CASA बैलेंस 100 लाख 10 हजार करोड़ नहीं होता.

फिलहाल  नयी परिस्थितयों में लिक्विड फण्ड के बारे में लोगों में जागरूकता बढ़ाने में ICRA की रिपोर्ट काम आ सकती है.

इस रिपोर्ट के अनुसार, 31st जुलाई 2017 को म्यूच्यूअल फण्ड इंडस्ट्री के पास 4.19 लाख करोड़ रूपये लिक्विड फण्ड में जमा थे और पिछले 1 साल में इन योजनाओं में 6.5% से 7% की सालाना दर से रिटर्न बना है. जब की पिछले 5 महीनों में ब्याज दरों के घटने कि बाद भी लिक्विड फंड्स ने 6.25% से 6.50% की दर से रिटर्न दिया है.

 ऊपर दिए गए चार्ट से यह निकल कर आता है कि अगर आप 30% टैक्स दायरे में हैं तो भी पोस्ट टैक्स 1.63% ज्यादा रिटर्न बनाते हैं,

नियमों के अनुसार लिक्विड फण्ड 91 दिन तक के मनी मार्केट इंस्ट्रूमेंट्स में निवेश कर सकते हैं, जब कि अधिकतर  लिक्विड फण्ड 60 दिन से ज्यादा के इंस्ट्रूमेंट्स में निवेश नहीं करते. सेबी के निर्देश अनुसार 60 दिन या उस से कम के डेब्ट  इंस्ट्रूमेंट्स की वैल्यू म्यूच्यूअल फण्ड कंपनी Amortisation मेथड से कर सकती है और 60 दिन से ज्यादा के इंस्ट्रूमेंट्स का वैल्यूएशन मार्क तो मार्केट मेथड के अनुसार करना होता है.

NAV जब Amortisation प्रक्रिया से निकाली जाती है तो पोर्टफोलियो की वैल्यू में कोई उतार चढाव नहीं आता और NAV हमेशा सीधी लाइन में बढ़ते हुए क्रम में चलती है, इसलिए लिक्विड फण्ड की  NAV में उतार चढ़ाव नहीं देखे जाते. बैंक और बड़े कॉर्पोरेट्स इसलिए लिक्विड फण्ड में निवेश करते हैं क्यूंकि उन्हें सेफ्टी के साथ यहाँ पर लिक्विडिटी भी मिलती है और ज्यादा रिटर्न भी.

एक साल में कितना फायदा हो सकता है सेविंग्स अकाउंट कि जगह लिक्विड फण्ड में पैसे रखने से

एक साल में 1000 से लेकर 3000 रुपये तक नुकसान आप उठाते हैं अगर आप अपने सेविंग्स अकाउंट में औसतन 1 लाख रुपये रखते हैं. नीचे दिए गए चार्ट के अनुसार 30% टैक्स स्लैब वाले को साल में 1000 रुपये का नुकसान होता है और यही नुकसान 5% स्लैब वाले के लिए बढ़ कर 2675 रुपये हो जाता है.

और यह नुकसान बढ़ कर 7500 से 15000 रुपये हो जाता है अगर आपका सेविंग्स अकाउंट में पूरे साल में औसतन जमा 5 लाख रुपये रहता है.
समझने वाली बात यह भी है कि आप लिक्विड फण्ड में पैसे लगा कर अपने लिए भी ज्यादा लाभ कमाते हैं  और देश की तरक्की में भी अपना योगदान ज्यादा टैक्स दे कर करते हैं.

इसीलिए कॉर्पोरेट्स, बैंक और बड़े निवेशक (HNI) अपने छोटे समय के सरप्लस फंड्स को लिक्विड फण्ड में रखते हैं जिस से वो थोड़ी अतिरिक्त कमाई भी कर लेते हैं और उनका पैसा सुरक्षित होने के साथ कभी भी इस्तेमाल करने के लिए बिना किसी रुकावट के उपलब्ध रहता है.


कॉर्पोरेट्स, बैंक और बड़े निवेशक (HNI) तो इन योजनाओं का लाभ उठा रहे हैं, अब देखना यह है कि म्यूच्यूअल फण्ड इंडस्ट्री इस शानदार प्रोडक्ट को रिटेल इन्वेस्टर तक सही तरीके से कब तक पहुंचा पाते है और दूसरी तरफ रिटेल इन्वेस्टर लिक्विड फण्ड को अपने लिए कितना जरुरी समझ पाता है.


ऊपर दिए गए चार्ट से यह तो पता चलता है कि पिछले दो वर्षों में रिटेल इन्वेस्टर का योगदान लिक्विड फण्ड  के  AUM में 2% बढ़ा है लेकिन 4.19 लाख करोड़ के मुकाबले 36000 करोड़  बहुत कम है.

म्यूच्यूअल फण्ड इंडस्ट्री को मिल कर लिक्विड फण्ड को रिटेल इन्वेस्टर के लिए और भी आकर्षक और सुविधाजनक बनाने के लिए प्रयास करना होगा जिससे कि यह प्रोडक्ट देश के हर बैंक अकाउंट होल्डर के पास पहुँच सके. हाल ही में सेबी ने लिक्विड फण्ड से 50,000 रुपये तक तुरन्त निकासी की सुविधा देने के म्यूच्यूअल फण्ड इंडस्ट्री के प्रस्ताव को मंजूरी दी  है. नए प्रावधान के अनुसार अब आप 50000 रुपये तक की राशि लिक्विड फण्ड से आप तुरंत निकाल कर अपने बैंक अकाउंट में ला सकते हैं जब कि पहले लिक्विड फण्ड से पैसे बैंक अकाउंट में आने में 1 दिन का समय पहले लगता था.

म्यूच्यूअल फण्ड की यह योजना सेविंग्स अकाउंट का पूरी तरह से विकल्प तो नही हो सकती लेकिन आप इसका सही से इस्तेमाल करके अपने लिए अधिक फायदा के काम कर सकते हैं.

जरुरत है एक आम निवेशक को इसे समझने और प्रयोग में लाने की.

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